परिचय: आई.ए.रिचर्ड्स का जन्म सन् 1893 में हुआ। उनका रचनाकाल सन् 1924 से 1936 के मध्य माना जाता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे। एक दर्जन गं्रथों में से ‘ प्रिसिंपल ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म’ सबसे अधिक प्रसिद्ध।
सैद्धांतिक दृष्टिकोण:
ऽ उनके पूर्व क्रोचे अपना अभिव्यंजनावाद स्थापित कर चुके थे। सिग्मण्ड फ्रायड, युंग तथा एडलर ने मनोविश्लेषणवाद का प्रतिपादन किया। मेक्स ईस्टमैन ने कविता को विज्ञान का अनुगमन करने की सलाह दी। आर्नल्ड ने यह घोषणा की कि धर्म और सस्कृति के इस संक्रांति काल में कविता ही मानव का उद्धार कर सकती है।
ऽ इस संक्रांति काल में वैज्ञानिक उन्नति एवं भैतिक समृद्धि के संदर्भ में कविता का अवमूल्यन होने लगा। तब रिचर्ड्स मनोविज्ञान के क्षेत्र से साहित्य के क्षेत्र में आए और मनोविज्ञान किा आधार लेकर उन्होंने अपने काव्य सिद्धांतों का उल्लेख किया। उन्होंने दो प्रमुख सिद्धांत दिए -
1. कला का मूल्यवादी या उपयोगितावादी सिद्धांत 2. सम्प्रेषणीयता का सिद्धांत।
आई.ए.रिचर्ड्स का मूल्य सिद्धांत
ऽ रिचर्ड्स से पूर्व पेटर, आस्कर वाइल्ड तथा प्रो. ब्रेडले आदि ने कला को कला के लिए माना और यह स्वीकार किया कि सौंदर्यजन्य आनंद ही काव्य कला का चरम मूल्य और प्रयोजन है। सौंदर्य पर दृष्टि टिकी होने के कारण इन विचारकों ने काव्य में नैतिक मूल्यों को गौण माना और ‘कविता कविता के लिए ’ या ‘कला कला के लिए’ सिद्धांत का प्रचार किया।
ऽ उक्त सिद्धांतों का खंडन करते हुए रिचर्ड्स ने कला-काव्य का जीवन मूलक मूल्यों से घनिष्ठ संबंध स्वीकार किया। उन्होंने माना कि सत्कला की मूलभूत शर्तें पूरी करने के उपरान्त कला को मानवसुख की अभिवृद्धि में निरत होना चाहिए, पीड़ितों का उद्धार करना चाहिए, पारस्परिक सहानुभूति के विस्तार में संलग्न होना चाहिए।
ऽ काव्य रचना एक मानवीय क्रिया है, इसके मूल्य का मान नहीं होना चाहिए। जिस वस्तु से हमारी अधिक से अधिक इच्छाओं की तुष्टि हो सकती है, वह सर्वाधिक मूल्यवान हैै।
ऽ उनका मत है कि आज जब प्राचीन परंपराएं टूट रही हैं और मूल्य विघटित हो रहे हैं, तब सभ्य समाज, कला और कविता के सहारे ही अपनी मानसिक व्यवस्था और संतुलन बनाए रख सकता है। जो कविता या कला-कृति स्नायुमंडल में व्यवस्था उत्पन्न करती है, वही प्रेरणा या आनंद प्रदान करती है और वही कल्याणकारी भी है। अतः कला का मूल्य से अटूट संबंध है, क्योंकि मूल्य हमारे लिए उत्तम एवं प्रेरक अनुभव ही होते हैं
ऽ मन के भीतर आवेगों या वृत्तियों में उतार चढ़ाव,जीवन की परिस्थितियों या संघर्षों के कारण होता रहता है। इससे मन में तनाव या विषमता उत्पन्न होती रहती है। काव्य और कलाएं इन आवेगों में संगति और संतुलन स्थापित करती रहती हैं और आवेगों को व्यवस्थित कर स्नायुमंडल को केवल राहत नहीं देती, वरन् सुख भी पहुंचाती हैं। सौंदर्य इसीलिए मूल्यवान है।
ऽ मूल्यांकन संबंधी धारणाओं का संबंध मानसिक उद्वेगों से है। इसके दो रूप हैं-
1. प्रवृत्तिमूलक - भूख, तृष्णा, वासना आदि।
2. निवृत्तिमूलक - घृणा, निर्वेद, वितृष्णा आदि।
ऽ जो प्रवृत्तिमूलक उद्वेगों की संतुष्टि करे, वही मूल्यवान है, क्योंकि वह उसके मन के विविध मांगों की संतृष्टि करता है। वे आवेग अधिक महŸवपूर्ण है जो दूसरों को क्षति पहुंचाए बिना अपना विकास करते हैं। फिर भी मन की सबसे उत्तम स्थिति वह है जिसमें मानसिक क्रियाओं की सर्वोत्तम संगति रहती है तथा आवेगों का संघर्ष और विघटन कम होता है। कविता और कला आवेगों के बीच संतुलन स्थापित करती है। हमारी अनुभूतियों और संवेदनाओ ंको व्यापक बनाती है और इस प्रकार मानव-मानव के बीच संवेदनात्मक एकत्व स्थापित करती है। (भारतीय दृष्टिकोण से इसे अनुभव का साधारणीकरण कह सकते हैं।) रिचर्ड्स इस प्रकार का संतुलन और समन्वय कला का गुण मानते हैं। यही उनका मूल्य है।
ऽ वैयक्तिक तथा सामाजिक स्वरूप से जीवन का मूल्य मांगों की संगतिपूर्ण व्यवस्था पर निर्भर रहता है। साहित्य का मूल्य इसमें है कि वह हमारे उद्वेगों में संगति और संतुलन स्थापित करे और कविता आकांक्षाओं की तुष्टि करती है, अतः वह मूल्यवान है। वह कविता और भी मूल्यवान है, जो ऐसी श्रेष्ठ आकांक्षाओं की तुष्टि करे, जिससे कम से कम वृत्तियां क्षुब्ध होती हों। इस प्रकार कविता भौतिक वस्तुओं से कहीं अधिक मूल्यवान है।
ऽ काव्यात्मक अनुभूति और सामान्य अनुभूति में अन्तर नहीं। उनके अनुसार कलात्मक अनुभूति किसी भी रूप में अलौकिक नहीं होती। काव्य और कलाएं मानव के अन्य व्यापारों से संबंद्ध हैं, उनसे भिन्न और पृथक नहीं। किसी भी मानव-क्रिया का मूल्य इस बात से निर्धारित होता है कि वह किस सीमा तक मानव-मनोवेगों से संतुलन और व्यवस्था उत्पन्न करने में सक्षम है और इस दृष्टि से कविता और कला-सर्जना सर्वाधिक मूल्यवान क्रियाएं हैं। उनके मूल्य-सिद्धांत को ‘सिनेस्थीसिस’ या सामंजस्य या संतुलन का सिद्धांत भी कहा जा सकता है।
बहुत ही ज्ञानवर्धक धन्यवाद
ReplyDeleteBahut acha acha likhe h
ReplyDeleteBahut acha acha likhe h
ReplyDeleteThanks I'm impress.
ReplyDeleteThank you
Deleteउम्दा विवेचना
ReplyDeleteआपकी विवेचन बहुंत लाभांवित हैं।
ReplyDeleteअति अति सुंद
ReplyDeleteअच्छा प्रयास गुरु जी , धन्यवाद ।
ReplyDeleteSuprrrrrrr sir
ReplyDeleteThankyou sir🙏🙏
ReplyDeleteBh
ReplyDeleteअति उत्तम।।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteThank you ma'am
ReplyDeleteसभी पाठकों का बहुत बहुत आभार. यह नोट आप लोगों को पसंद आया, मेरा श्रम सार्थक हुआ.
ReplyDeleteThank you Sir
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेखनी है,आपको बहुत बहुत शुक्रिया ,हम सभी हिंदी के विद्यार्थी आपकी इस लेख से बहुत ही लाभ उठा सकेंगे
ReplyDeleteइससे मुझे बहुत हेल्प मिली थैंक्स
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