Tuesday, February 21, 2012

अरस्तू का अनुकरण (अनुकृति सिद्धांत)

अरस्तू का अनुकरण सिद्धांत प्लेटो के अनुकरण सिद्धांत से भिन्न है तथा उसे एक नया अर्थ प्रदान करता है। प्लेटो ने कविता की तुलना चित्रकला से की है, परंतु अरस्तू ने कविता की तुलना संगीत से करते हुए स्पष्ट किया कि चित्रकला में वस्तु जगत की चीजों के स्थूल रूपाकार का अनुकरण किया जाता है। परंतु संगीत कला में मनुष्य की आंतरिक वासनाओं, वृत्तियों और भावनाओं को मूर्त किया जाता है। संगीत से तुलना करने से स्पष्ट है कि अरस्तू को अनुकरणका व्यापक और सूक्ष्म अर्थ मान्य है। उसके लिए अनुकरण दृश्य वस्तु जगत की स्थूल अनुकृति नहीं है। उसे अनुसार कवि अपनी रचना में दृश्य जगत की वस्तुओं को जैसी वे हैं, वैसी ही प्रस्तुत नहीं करता। या तो वह उन्हें बेहतर रूप में प्रस्तुत करता है या हीनतर रूप में। उसकी दृष्टि में अनुकरणमात्र आकृति और स्वर का ही नहीं किया जाता, वह आंतरिक भावों और वृत्तियों का भी किया जाता है।
          अरस्तू के अनुसार कवि के अनुसरण का विषय कर्म-रत मनुष्य है। मनुष्य वाह्य जीवन के साथ ही मानसिक स्तर भी क्रियाशील होता है, उसके मानसिक क्रिया-कलापों का, उसकी मानसिक उधेड़ बुन का या मनोवृत्तियों के उत्कर्ष अपकर्ष का चित्रण एक मनोवैज्ञानिक एवं रचनाशील प्रक्रिया है। कवि इसे अपनी रचनात्मक कल्पना द्वारा ही मूर्त या चित्रित कर सकता है। पलंग का चित्र निर्मित करने की प्रक्रिया में पलंग को जब चित्रकार देखता है तो नेत्रों माध्यम से देख गया रूपाकार पहले चित्रकार के मानसपटल पर अंकित होता है।उसके बाद उसका मनोबिंब चित्रकार की कल्पना शक्ति के सहारे चित्र के रूप में आकार ग्रहण करता है। इसलिए उसे नकल या स्थूल अनुकरण कहकर हेय नहीं ठहराया जा सकता।
          अरस्तू ने स्पष्ट कर दिया कि कवि और चित्रकार के कला माध्यम अलग अलग हैं। चित्रकार रूप और रंग के माध्यम से अनुकरण करता है, जबकि कवि भाषा, लय और सामंजस्य के माध्यम से। जिस प्रकार संगीत में सामंजस्य और लय का, नृत्य में केवल लय का उपयोग होता है, उसी प्रकार काव्यकला में अनुकृति के लिए भाषा का प्रयोग होता है। यह भाषा गद्य या पद्य दोनों में हो सकती है। इस स्तर पर वह संगीत कला के अधिक निकट है। भारतीय शब्दावली का प्रयोग करें तो कह सकते हैं कि अरस्तू के विचार से काव्य की आत्मा अनुकृतिहै।
          अरस्तू ने अनुकरण को प्रतिकृति मानकर पुनः सृजन अथवा पुनर्निमाण माना है। उसकी दृष्टि में अनुकरण नकल होकर सर्जन प्रक्रिया है। इसमें संवेदना और आदर्शों का मेल है। इन्हीं के द्वारा कवि अपूर्णता को पूर्णता प्रदान करता है। अरस्तू के अनुसार तीन प्रकार की वस्तुओं में से किसी एक का अनुकरण होता है-
1.            जैसी वे थीं या हैं। 2. जैसी वे कही या समझी जाती हैं। 3. जैसी वे होनी चाहिए।
अरस्तू ने इन्हें प्रतीयमान, संभाव्य और आदर्श माना है। अरस्तू का अनुकरण संवेदनामय है। कल्पनायुक्त है, शुद्ध प्रतिकृति नहीं।
          अरस्तू ने अनुकृति के माध्यम, विषय और विधान का विस्तार से विचार किया। यद्यपि सभी कलाओं का मूल तत्त्व अनुकृति ही है, किंतु उन सबके माध्यम आदि के पारस्परिक अंतर के कारण ही वे एक दूसरी से पृथक की जाती है। अतः काव्य के विशिष्ट अध्ययन के लिए उसके माध्यम आदि का ज्ञान अपेक्षित है।
          माध्यम - अनुकृति के लिए छंद ही माध्यम हो ऐसा आवश्यक नहीं। भाषा का कोई भी रूप काव्यात्मक अनुकृति का माध्यम बन सकता है। कविता मात्र छंदबद्ध प्रस्तुति नहीं है यदि ऐसा होता तो भौतिक या चिकित्साशास्त्र की छंदबद्ध प्रस्तुति भी कविता कहलाती।
          विषय - काव्य में मानवीय क्रियाकलापों का अनुकरण होता है। काव्य के दो भेदों में से कामदी का लक्ष्य हीनतर रूप को प्रस्तुत करना होता है, जबकि त्रासदी का लक्ष्य भव्यतर चित्रण करना।
          विधान - काव्य के विभिन्न रूपों में अनुकृत विषय एवं उनके माध्यम की समानता होते हुए भी उनमें परस्पर विधि या शैली का अंतर विद्यमान रहता है। अरस्तू ने सामान्यतः तीन शैलियों का उल्लेख किया है -
1.            जहाँ कवि कहीं स्वयं विषय का वर्णन करता है, कहीं अपने पात्रों के मुँह से कहलवा देता है। (प्रबंधात्मक शैली)
2.            प्रारंभ से लेकर अंत तक कवि एक जैसा ही रूप रखे।  (आत्माभिव्यंजनात्मक शैली)
3.            कवि स्वयं दूर रहकर समस्त पात्रों को नाटकीय शैली में प्रस्तुत करें। (नाट्य शैली)
          अरस्तू के अनुकरण सिद्धांत के महत्त्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं-
1.            कविता जगत की अनुकृति है तथा अनुकरण मनुष्य की मूल प्रवृत्ति है।
2.            अनुकरण से हमें शिक्षा मिलती है। बालक अपने से बड़ांे की क्रियाएं देखकर तथा उसका अनुकरण करके ही सीखता है।
3.            अनुकरण की प्रक्रिया आनंददायक है। हम अनुकृत वस्तु मंे मूल का सादृश्य आनंद प्राप्त करते हैं।
4.            अनुकरण के माध्यम से भयमूलक या त्रासमूलक वस्तु को भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है जिससे आनंद की अनुभूति हो।
5.            काव्यकला सर्वोच्च अनुकरणात्मक कला है तथा अन्य सभी ललित कलाओं एवं उपयोगी कलाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है। नाटक काव्यकला का सर्वाधिक उत्कृष्ट रूप है। अरस्तू ने काव्य की समीक्षा स्वतंत्र रूप से की है। प्लेटो की भांति दर्शन और राजनीति के चश्मे से नहीं देखा।

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