Tuesday, February 21, 2012

आई.ए.रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धांत


          पूर्व प्रचलित प्रेषणीयता शब्द की नवीन व्याख्या करते हुए रिचर्ड्स ने कहा कि- प्रेषणीयता कोई अद्भुत या रहस्यमय व्यापार नहीं है, अपतिु मन की एक सामान्य क्रिया मात्र है। प्रेषणीयता में जो कुछ होता है, वह यह है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में विभिन्न मस्तिष्क प्रायः एक जैसी अनुभूति प्राप्त करते हैं। जब किसी वातावरण विशेष से एक व्यक्ति का मस्तिष्क प्रभावित होता है तथा दूसरा उस व्यक्ति की क्रिया के प्रभाव से ऐसी अनुभूति प्राप्त करता है जो कि पहले व्यक्ति की अनुभूति के समान होती है, तो उसे प्रेषणीयता कहते हैं। वस्तुतः किसी अन्य की अनुभूति को अनुभूत करना ही प्रेषणीयता है। (कवि कलाकार या सर्जक की अनुभूतियों का भावक द्वारा अनुभूत किया जाना ही संप्रेषण है।)
          रिचर्ड्स के मतानुसार- संप्रेषण के लिए तीन बातें आवश्यक हैं-
1.            कलाकृति की प्रतिक्रियाएं एकरस हों
2.            वे पर्याप्त रूप से विभिन्न प्रकार की हों
3.            वे अपने उत्तेजक कारणों द्वारा उत्पन्न किए जाने योग्य हों।
          उन्होंने स्पष्ट किया कि कला में प्रेषणीयता आवश्यक है, किंतु कलाकार को इसके लिए विशेष प्रयत्न नहीं करना चाहिए। कलाकार जितना सहज एवं स्वाभाविक रूप में अपना कार्य करेगा, उसकी अनुभूतियां उतनी ही संप्रेषणीय होंगीं।
          संप्रेषण तभी पूर्णता से होता है, जब विषय रोचक और रमणीय होता है।

No comments:

Post a Comment