Tuesday, February 21, 2012

अस्तित्ववाद


          डेनिस विद्वान सारन कीर्केगार्ड के विचारों से उद्भूत तथा जे.पी.सार्त्र द्वारा पल्लवित अस्तित्ववादी विचारधारा
का आधारभूत शब्द अस्तित्व अंग्रेजी के मगपेजंदबम  का पर्याय है।
          इस वाद के अनुयायी विचार या प्रत्यय की अपेक्षा व्यक्ति के अस्तित्व को अधिक महत्त्व देते है। इनके अनुसार सारे विचार या सिद्धांत व्यक्ति की चिंतना के ही परिणाम हैं। पहले चिंतन करने वाला मानव या व्यक्ति अस्तित्व में आया, अतः व्यक्ति अस्तित्व ही प्रमुख है, जबकि विचार या सिद्धांत गौण। उनके विचार से हर व्यक्ति को अपना सिद्धांत स्वयं खोजना या बनाना चाहिए, दूसरों के द्वारा प्रतिपादित या निर्मित सिद्धांतों को स्वीकार करना उसके लिए आवश्यक नहीं। इसी दृष्टिकोण के कारण इनके लिए सभी परंपरागत, सामाजिक, नैतिक, शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक सिद्धांत अमान्य या अव्यावहारिक सिद्ध हो जाते हैं। उनका मानना है कि यदि हम दुख एवं मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार कर लें तो भय कहाँ रह जाता है।
          अस्तित्वादी के अनुसार दुख और अवसाद को जीवन के अनिवार्य एवं काम्य तत्त्वों के रूप में स्वीकार चाहिए। परिस्थितियों को स्वीकार करना या करना व्यक्ति की ही इच्छा पर निर्भर है। इनके अनुसार व्यक्ति को अपनी स्थिति का बोध दुख या त्रास की स्थिति में ही होता है, अतः उस स्थिति का स्वागत करने के लिए प्रस्तुत रहना चाहिए। दास्ताएवस्की ने कहा था- ‘‘ यदि ईश्वर के अस्तित्व को मिटा दें तो फिर सब कुछ (करना) संभव है।’’

1 comment:

  1. Very nice yaha bhut hi accha hai maye asha karta hu ki AP age bhi ayese ho ham logo ki madt Karo ge thanks

    ReplyDelete