Tuesday, February 21, 2012

आई.ए.रिचर्ड्स का काव्य-भाषा सिद्धांत


          काव्य के संप्रेषण का मुख्य माध्यम भाषा ही है। रिचर्ड्स का भाषा संबंधी चिंतन महŸवपूर्ण है। उसने प्रयोग की दृष्टि से भाषा के दो वर्ग माने हैं -
1.            तथ्यात्मक प्रयोग - इसका प्रयोग वैज्ञानिक और दार्शनिक करते हैं।
2.            रागात्मक  प्रयोग - रचनाकार भाषा के रागात्मक वर्ग का प्रयोग करते हैं। रागात्मक वर्ग की भाषा में प्रतीकों, बिंबों और भाव-संकेतों को विशेष महत्त्व दिया जाता है। यही भाषा कवियों और रचनाकारों की अनुभूति को संप्रेषित करने में समर्थ होती है।
          शब्द और अर्थ के संबंधों पर गहराई से विचार करते हुए रिचर्ड्स ने चार प्रकार के अर्थों का उल्लेख किया है-
1.            वाच्यार्थ या अभिधार्थ   ैमदबम
2.            भाव  थ्ममसपदह
3.            वक्ता की वाणीगत चेष्टा  ज्वदम
4.            अभिप्राय  प्दजमदजपवद 
          रिचर्ड्स के अनुसार समृद्ध और समर्थ भाषा में उपर्युक्त चारों अर्थछायाएं होती हैं। समर्थ रचनाकार की भाषा में उपर्युक्त सभी विशेषताएं होती हैं।
          भाषा से सामान्यतः उपर्युक्त चारों प्रकार के अर्थ सूचित होते हैं, किंतु विषय और परिस्थिति के भेद से इनका अनुपात बदलता रहता है। विज्ञान की पुस्तकों में वाच्यार्थ का अधिक प्रयोग होता है।
          रिचर्ड्स के अनुसार सेन्स या वाच्यार्थ में किसी वस्तु विशेष या किसी विधेय को शब्दों के द्वारा सूचित किया जाता है। ( विज्ञान एवं गणित आदि में प्रयोग)
          विज्ञान की पुस्तकों में वाच्यार्थ तो काव्य में भाव की अतिशयता होती है, फिर भी ये अर्थ परस्पर सर्वथा असंबद्ध नहीं हैं- वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। काव्य में भाव या भावार्थ की इतनी अधिक महत्ता होती है कि वहाँ वाच्यार्थ या सूच्य तथ्य गौण हो जाते हैं। वहाँ तथ्य साधन होते हैं, साध्य नहीं, अतः जो लोग केवल तथ्यों अथवा विचारों के आधार पर ही कविता का मूल्यांकन करते हैं, वे काव्य के साथ न्याय नहीं करते।
          भाषा का प्रयोग भाव की प्रेरणा से होता है। (गणित जैसे कुछ विषयों को अपवाद स्वरूप छोड़कर) कविता विचारों की अभिव्यक्ति के लिए नहीं अपितु भावों के प्रभाव के लिए होती है।
          अर्थ और भाव के पारस्परिक संबंध को स्पष्ट करते हुए रिचर्ड्स ने उसके तीन रूप स्वीकार किए हैं-
1.            जहाँ अर्थ ही भाव का बोधक हो।
2.            जहाँ अर्थ भाव की अनुभूति का सूचक हो।
3.            जहाँ प्रसंग विशेष के कारण अर्थ विभिन्न भावों का सूचक हो।
          टोन या लहजे के द्वारा वाचक का श्रोता के प्रति दृष्टिकोण व्यक्त होता है। क्रोध और प्रेम की दशा में हमारा टोन अलग-अलग होता है।
          सामान्यतः कोई भी व्यक्ति किसी प्रयोजन से ही कुछ कहता है, अतः अभिप्राय का भाषा से महत्त्वपूर्ण संबंध है।
          गणपतिचंद्र गुप्त के अनुसार- भाषा के चारों भेदों का विभाजन वैज्ञानिक एवं सुसंगत नहीं है। सही बात तो यह है कि रिचर्ड्स के भाव, लहजा और अभिप्राय - अर्थ के तीन भेद होकर एक-दूसरे के अंग हैं। अर्थों के इस वर्गीकरण की अपेक्षा भारतीय आचार्यों  द्वारा किए गए शब्द शक्ति के भेद अभिधा, लक्षणा और व्यंजना- अधिक वैज्ञानिक एंव तर्कसंगत हैं।

1 comment: