Tuesday, February 21, 2012

टी.एस. इलियट: परंपरा की अवधारणा


पृष्ठभूमि:  -इलियट के पहले 19वीं शती में अंग्रेजी में जिस रोमैंटिक समीक्षा का प्रचलन था वह कवि की वैयक्तिकता और कल्पनाशीलता को विशेष महत्त्व देता थी। 19वीं शती केे अंतिम चरण में वाल्टर पेटर और ऑस्कर वाइल्ड ने कलावादको अत्यधिक महत्त्व दिया। अर्थात् 19वीं शती की अंग्रेजी समीक्षा कृति के स्थान पर कवि और उसकी वैयक्तिकता को महत्त्व देती थी।
          स्वछंदतावादी विद्वान कवि की प्रतिभा और अंतःप्रेरणा को ही काव्य-सृजन का मूल मानकर प्रतिभा को दैवी गुण स्वीकार करते थे। इसे ही वैयक्तिक काव्य सिद्धांतकहा गया। इस मान्यता को इलियट ने अपने निबंध परंपरा और वैयक्तिक प्रज्ञामें स्वीकार किया और कहा ‘‘परंपरा के अभाव में कवि छाया मात्र है और उसका कोई अस्तित्व नहीं होता।’’ उनके अनुसार, ‘‘परंपरा अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण वस्तु है, परंपरा को छोड़ देने से हम वर्तमान को भी छोड़ बैठेंगे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि परंपरा के भीतर ही कवि की वैयक्तिक प्रज्ञा की सार्थकता मान्य होनी चाहिए।
          परंपरा को पारिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘इसके अंतर्गत उन सभी स्वाभाविक कार्यों, आदतों, रीति-रिवाजों का समावेश होता है जो स्थान विशेष पर रहने वाले लोगों के सह-संबंध का प्रतिनिधित्व करते हैं। परंपरा के भीतर विशिष्ट धार्मिक आचारों से लेकर आगंतुक के स्वागत की पद्धति और उसको संबोधित करने का ढंग, सब कुछ समाहित है।’’ इलियट यह मानता है कि परंपरा उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होती। यह अर्जित की जाती है। वस्तुतः इलियट के लिए परंपरा एक अविच्छिन्न प्रवाह है जो अतीत के सांस्कृतिक-साहित्यिक दाय के उत्तमांश से वर्तमान को समृद्ध करता है। यह अतीत की जीवंत शक्ति है जिससे वर्तमान का निर्माण होता है और भविष्य का अंकुर फूटता है।
          परंपरा के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए इलियट ने इस बात पर बल दिया कि कवियों का मूल्यांकन परंपरा की सापेक्षता में किया जाय। उसके अनुसार कोई भी रचनाकार स्वयं में महत्त्वपूर्ण नहीं होता। वह अपने पूर्ववर्ती कवियों की तुलना में ही अपनी महत्ता सिद्ध कर सकता है।
          इलियट के अनुसार परंपरा का महत्त्वपूर्ण तत्त्व इतिहास-बोध है। परंपरा से उनका तात्पर्य प्राचीन रूढ़ियों का मूक अनुमोदन अथवा अंधानुकरण कदापि नहीं है, अपितु परंपरा वस्तुतः प्राचीन काल के साहित्य तथा धारणाओं का सम्यक् बोध है। वह परंपरा से प्राप्त ज्ञान का अर्जन और उसके विकास का पक्षधर है। यही परंपरा का गत्यात्मक रूपरूप है।
          परंपरा गतिशाील चेतना, चिरगतिशील सर्जनात्क संभावनाओं की समष्टि है। परंपरा जहां हमें नवीन को मूल्यांकन करने का निकष प्रदान करती है, वहीं प्राचीनता के विकास के साथ-साथ मौलिकता का सृजन भी करती है। इस कारण वे सर्जनात्मक विकास के लिए अतीत में विद्यमान श्रेष्ठ तत्त्वों का बोध अनिवार्य मानते हैं। परंपरा ज्ञान के अभाव में हम यह कैसे जान सकेंगे कि मौलिकता क्या है, कहां है ? वस्तुतः अतीत को वर्तमान में देखना रूढ़िवादिता नहीं, मौलिकता है। वर्तमान कला का यथार्थ मूल्यांकन तभी संभव है, जब उन्हें विगत कला -रूपों के परिप्रेक्ष्य में परखा जाएगा अन्यथा उसकी मौलिकता और श्रेष्ठता का आकलन नहीं हो सकेगा।
          इलियट द्वारा प्रतिपादित परंपरा-सिद्धांत अत्यंत व्यापक और उपादेय है। परंपरा से ज्ञान का विस्तार होता है तथा अतीत और वर्तमान से जुड़ाव होता है, जिसमें कलाकार को मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए पूर्ववर्ती धाराओं से अवगत होकर कला तथा साहित्य की सर्जना करना होता है।
          परंपरा का संबंध संस्कृति से है। संस्कृति में किसी जाति या समुदाय के जीवन, कला, दर्शन-साहित्य आदि के उत्कृष्ट अंश सन्निविष्ट रहते हैं। संस्कृति में एक प्रकार का नैरन्तर्य रहता हैं, उसकी प्राप्ति  के लिए प्रयत्नपूर्वक अतीत को जानना जरूरी है। परंपरा बोध से साहित्यकार को यह भी ज्ञात हो जाता है कि वह जो कुछ कर रहा है, उसका मूल्य क्या इस प्रकार परंपरा ज्ञान द्वारा साहित्यकार को कर्तव्यबोध और मूल्यों का साहित्यिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
          इलियट ने समीक्षा या समालोचना, निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत, वस्तुनिष्ट समीकरण का सिद्धांत, परंपरा-सिद्धांत आदि पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इलियट का व्यक्तित्व पाश्चात्य काव्यशास्त्र के लिए युगान्तकारी रहा। काव्य सिद्धांतों के प्रतिपादन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

9 comments:

  1. बहुत ज्ञानवर्धक लेख है। बहुत सी पुस्तकों में ये टॉपिक नही मिल रहा था नेट की

    ReplyDelete
  2. kya mai aapke iss lekh ko ignou M.A Hindi ke exam me likh sakta hu. Pls Reply

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिलकुल लिख सकते हैं. यदि यह नोट किसी भी तरह से किसी के काम आ सकता है तो यह मेरे लिए ख़ुशी की बात होगी.

      Delete
  3. इसे आप रिसर्च पेपर के रूप में लिख सकते थे। परंतु लिखा नहीं। संदर्भ ग्रंथो की सूची पृष्ठ आदि लिखने चाहिए थे। केवल कई स्थानों पर " " में चीजें दी हुई है। इसे आप रिराइट कर सकते हैं।

    ReplyDelete
  4. सार्थक और ज्ञानवर्धक लेख।

    ReplyDelete